गणेश चतुर्थी : महत्त्व और उत्सव
गणेश चतुर्थी हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, जो भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। गणेश, जिन्हें विघ्नहर्ता (अवरोधों को दूर करने वाले) और बुद्धि के देवता के रूप में पूजा जाता है, का यह उत्सव विशेष रूप से महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा और आंध्र प्रदेश सहित पूरे भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होता है, जो आमतौर पर अगस्त-सितंबर में आता है, और 10 दिनों तक चलता है। इसका समापन अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश विसर्जन के साथ होता है।
गणेश चतुर्थी का इतिहास और महत्त्व
गणेश चतुर्थी का उत्सव प्राचीन काल से ही मनाया जाता रहा है। भगवान गणेश को किसी भी नए कार्य की शुरुआत में पूजने की परंपरा है क्योंकि उन्हें शुभता, समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। इस उत्सव का प्रारंभ 17वीं शताब्दी में छत्रपति शिवाजी महाराज के काल में हुआ था। हालांकि, 1893 में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इसे एक सार्वजनिक उत्सव के रूप में पुनर्जीवित किया। उन्होंने इसे ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों को एकजुट करने और सामाजिक जागरूकता फैलाने के एक साधन के रूप में इस्तेमाल किया।
उत्सव और पूजा-विधि
गणेश चतुर्थी का आरंभ गणपति की मूर्ति की स्थापना के साथ होता है। लोग घरों, मंदिरों और सार्वजनिक पंडालों में गणेश की सुंदर मूर्तियों की स्थापना करते हैं। मूर्ति स्थापना के बाद भगवान गणेश की पूजा विधिपूर्वक की जाती है, जिसमें उन्हें मोदक, नारियल, दूर्वा घास और फूल अर्पित किए जाते हैं। प्रतिदिन सुबह और शाम को आरती की जाती है और भजन-कीर्तन के साथ भगवान गणेश से सुख-समृद्धि की प्रार्थना की जाती है।
- प्राण-प्रतिष्ठा: पहले दिन भगवान गणेश की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा की जाती है, यानी मूर्ति में जीवन डालने की विधि।
- दैनिक पूजा और आरती: 10 दिनों तक लोग नियमित रूप से भगवान गणेश की पूजा करते हैं, उन्हें प्रसाद चढ़ाते हैं और आरती करते हैं। भगवान गणेश का प्रिय प्रसाद मोदक होता है।
- गणेश विसर्जन: उत्सव के अंतिम दिन, बड़ी धूमधाम से गणेश प्रतिमाओं को नदी, तालाब या समुद्र में विसर्जित किया जाता है। विसर्जन के दौरान लोग “गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ” के नारे लगाते हैं और भगवान गणेश से अगले वर्ष फिर से आने की प्रार्थना करते हैं।
पर्यावरणीय जागरूकता
हाल के वर्षों में पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए गणेश चतुर्थी के दौरान मिट्टी से बनी मूर्तियों का प्रचलन बढ़ा है। प्लास्टर ऑफ पेरिस (POP) से बनी मूर्तियां जलस्रोतों को प्रदूषित करती हैं, इस कारण से लोग अब पर्यावरण-अनुकूल मूर्तियों और कृत्रिम जलाशयों में विसर्जन को प्राथमिकता दे रहे हैं।
सांस्कृतिक और सामाजिक महत्त्व
गणेश चतुर्थी न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण है। इस दौरान कई स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है, जैसे संगीत, नाटक, और सामुदायिक सेवा। यह पर्व लोगों को एकजुट करता है और समाज में भाईचारे और एकता का संदेश फैलाता है।
निष्कर्ष
गणेश चतुर्थी भगवान गणेश के प्रति भक्ति और आस्था का पर्व है। यह हमें जीवन में नई शुरुआत करने की प्रेरणा देता है और यह बताता है कि किसी भी कार्य की शुरुआत से पहले शुभता और बुद्धि का होना आवश्यक है। इस पर्व से समाज में सामूहिकता और सद्भावना का विकास होता है, साथ ही यह हमें पर्यावरण की सुरक्षा की भी शिक्षा देता है।
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